श्रीरामचरितमानस प्रथम सोपान

जय श्रीराम

श्री रामचरितमानस: प्रथम सोपान (बालकाण्ड) - मासपारायण (दिवस - 1)

।। श्री गणेशाय नमः ।। श्रीजानकीवल्लभो विजयते ।।

आज से हम सब गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित पुण्यसलिला श्रीरामकथा गंगा में गोता लगाने का पुण्य प्रयास प्रारम्भ कर रहे हैं। श्रीरामचरितमानस का नित्य पाठ जीवन को मंगलमय बनाने वाला है। इसे एक माह में समाप्त करने की विधि को "मासपारायण" कहते हैं।[1] इसी क्रम में हम प्रथम सोपान "बालकाण्ड" के प्रथम दिन का पाठ यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं।

बालकाण्ड का आरम्भ मंगलाचरण से होता है, जिसमें श्री तुलसीदास जी विभिन्न देवी-देवताओं और गुरुजनों की वंदना करते हैं, ताकि श्री रघुनाथ जी की इस पवित्र गाथा को कहने की शक्ति प्राप्त हो सके।[2]


मंगलाचरण (श्लोक)

वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ॥1॥

भावार्थ: मैं अक्षरों, अर्थ समूहों, रसों, छन्दों और मंगलों को करने वाली सरस्वती जी और गणेश जी की वंदना करता हूँ।[3]

भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्‌॥2॥

भावार्थ: मैं श्रद्धा और विश्वास के स्वरूप श्री पार्वतीजी और श्री शंकरजी की वंदना करता हूँ, जिनके बिना सिद्धजन अपने अन्तःकरण में स्थित ईश्वर को नहीं देख सकते।[3]

वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकररूपिणम्‌।
यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते॥3॥

भावार्थ: मैं ज्ञानमय, नित्य, शंकर रूपी गुरु की वंदना करता हूँ, जिनके आश्रित होने से ही टेढ़ा चन्द्रमा भी सर्वत्र पूजा जाता है।[3]

सीतारामगुणग्रामपुण्यारण्यविहारिणौ।
वन्दे विशुद्धविज्ञानौ कवीश्वरकपीश्वरौ॥4॥

भावार्थ: मैं श्री सीताराम जी के गुण-समूह रूपी पवित्र वन में विहार करने वाले, विशुद्ध विज्ञान सम्पन्न कवीश्वर श्री वाल्मीकिजी और कपीश्वर श्री हनुमानजी की वंदना करता हूँ।[3]

उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्‌।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम्‌॥5॥

भावार्थ: उत्पत्ति, पालन और संहार करने वाली, क्लेशों को हरने वाली तथा सम्पूर्ण कल्याणों को करने वाली श्री रामचन्द्रजी की प्रियतमा श्री सीताजी को मैं नमस्कार करता हूँ।[3]

यन्मायावशवर्ति विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुरा...
...वन्देऽहं तमशेषकारणपरं रामाख्यमीशं हरिम्‌॥6॥

भावार्थ: जिनकी माया के वशीभूत सम्पूर्ण विश्व, ब्रह्मादि देवता और असुर हैं, जिनकी सत्ता से यह सारा संसार रस्सी में सर्प के भ्रम की भाँति सत्य प्रतीत होता है और जिनके चरण ही भवसागर से तरने की इच्छा वालों के लिए एकमात्र नौका हैं, उन समस्त कारणों से परे श्री राम कहलाने वाले भगवान हरि की मैं वंदना करता हूँ।[3]

नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद् रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि।
स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा भाषानिबन्धमतिमंजुलमातनोति॥7॥

भावार्थ: जो अनेक पुराणों, वेदों और शास्त्रों द्वारा सम्मत है, तथा जो रामायण में वर्णित है और कुछ अन्यत्र से भी उपलब्ध है, उसी श्री रघुनाथजी की कथा को तुलसीदास अपने अन्तःकरण के सुख के लिए इस अत्यन्त मनोहर भाषा-रचना में प्रस्तुत करता है।[3]


सोरठा एवं चौपाई

जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन।
करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥1॥

भावार्थ: जिन्हें स्मरण करने से सब कार्य सिद्ध होते हैं, जो गणों के स्वामी और सुंदर हाथी के मुख वाले हैं, वे ही बुद्धि के सागर और शुभ गुणों के धाम श्री गणेशजी मुझ पर कृपा करें।[4]

मूक होइ बाचाल पंगु चढ़इ गिरिबर गहन।
जासु कृपाँ सो दयाल द्रवउ सकल कलिमल दहन॥2॥

भावार्थ: जिनकी कृपा से गूँगा बहुत सुंदर बोलने वाला हो जाता है और लँगड़ा व्यक्ति भी दुर्गम पहाड़ पर चढ़ जाता है, वे कलियुग के सब पापों को जला देने वाले दयालु भगवान मुझ पर द्रवित हों (दया करें)।[4]

बंदउँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥
अमिअ मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू॥1॥

भावार्थ: मैं गुरु महाराज के चरण कमलों की उस रज की वंदना करता हूँ, जो सुंदर स्वाद, सुगंध तथा प्रेम रूपी रस से परिपूर्ण है। वह संजीवनी जड़ी का सुंदर चूर्ण है, जो समस्त सांसारिक रोगों के परिवार को भी नष्ट कर देने वाला है।[4]

...(इस प्रकार आगे संत, असंत, खल, राम नाम और रामचरित की महिमा का वर्णन करते हुए कथा आगे बढ़ती है।)


प्रथम दिवस का पारायण मंगलाचरण से प्रारम्भ होकर, गुरु वंदना, संत-असंत वंदना, नाम महिमा और श्री रामकथा की महिमा के गान तक विस्तृत है। यह भाग हमें कथा में प्रवेश करने के लिए मानसिक और आत्मिक रूप से तैयार करता है। यह सिखाता है कि निर्मल मन और गुरु कृपा के बिना इस भवसागर रूपी कथा को समझना संभव नहीं है।

।। इति श्रीरामचरितमानसे सकलकलिकलुषविध्वंसने प्रथमः सोपानः बालकाण्डान्तर्गतः प्रथमदिवसपारायणं समाप्तम् ।।

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