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रामकृष्ण परमहंस की जीवन- एक जीवन, अनेक मार्ग अमर कहानी

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1. बाल्यकाल: सरलता में ही गहराई थी रामकृष्ण परमहंस का जन्म 18 फरवरी 1836 को पश्चिम बंगाल के कामारपुकुर गाँव में हुआ था। उनका बचपन का नाम "गदाधर चट्टोपाध्याय" था। वह एक अत्यंत सरल, हँसमुख और अत्यंत संवेदनशील बालक थे। जब अन्य बालक खेलते थे, तो गदाधर प्रकृति की गोद में बैठकर पक्षियों की चहचहाहट, बादलों की गड़गड़ाहट और नदियों के बहाव में ईश्वर की झलक खोजा करते थे। उन्हें संगीत और धार्मिक कथाओं से विशेष लगाव था। एक बार गाँव में रामलीला हो रही थी, और जब राम वनवास को जा रहे थे, तब गदाधर इतने भावविभोर हो गए कि रोने लगे। यह दिखाता है कि उनकी आत्मा बचपन से ही ईश्वर में डूबी हुई थी। 2. दक्ष‍िणेश्वर का आगमन: साधना की शुरुआत जैसे-जैसे वह बड़े हुए, उनकी आध्यात्मिक प्यास बढ़ती गई। 1855 में, उनके बड़े भाई रामकुमार कोलकाता के पास स्थित दक्षिणेश्वर काली मंदिर में पुजारी बने। रामकृष्ण भी वहाँ पहुँचे और कुछ समय बाद स्वयं माँ काली के पुजारी बने। यहाँ से उनकी असाधारण साधना की यात्रा शुरू हुई। वह माँ काली के प्रति इतने समर्पित हो गए कि साधना करते-करते उनके शरीर की सुध-बुध तक चली जाती थी। उन्...

डॉ. भीमराव अंबेडकर : समाज, अर्थव्यवस्था की विचार कि क्रांति"

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डॉ. भीमराव अंबेडकर का जीवन – परिचय 1. जन्म और प्रारंभिक जीवन डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू (अब डॉ. अंबेडकर नगर) में एक गरीब और दलित परिवार में हुआ था। वे महार जाति से थे, जिसे उस समय समाज में अछूत माना जाता था। उनका पूरा नाम भीमराव रामजी अंबेडकर था। बचपन से ही उन्होंने जातिगत भेदभाव का दर्द झेला, स्कूल में अलग बैठाया जाता, पानी पीने की अनुमति नहीं दी जाती। लेकिन उन्होंने शिक्षा को अपना हथियार बनाया। 2. शिक्षा के प्रति संघर्ष भीमराव बचपन से ही पढ़ने में बहुत होशियार थे। उनके पिता रामजी सकपाल ने उन्हें शिक्षा दिलाने के लिए कठिन मेहनत की। अंबेडकर ने हाईस्कूल की परीक्षा 1907 में पास की, जो उस समय किसी दलित के लिए बहुत बड़ी बात थी। बाद में वे एलफिंस्टन कॉलेज में दाखिल हुए और फिर उन्होंने बड़ौदा महाराजा की छात्रवृत्ति से अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की। 3. विदेश में शिक्षा और उपलब्धियाँ अंबेडकर ने कोलंबिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र, राजनीति और समाजशास्त्र में उच्च शिक्षा प्राप्त की। फिर वे लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स गए, जहाँ उन्होंने D....

श्री शनि चालीसा

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                दोहा जय गणेश गिरिजा सुवन मंगल करण कृपाल । दीनन के दुख दूर करि कीजै नाथ निहाल ॥ जय जय श्री शनिदेव प्रभु सुनहु विनय महाराज । करहु कृपा हे रवि तनय राखहु जनकी लाज ॥ जयति जयति शनिदेव दयाला । करत सदा भक्तन प्रतिपाला ॥ चारि भुजा तनु श्याम विराजै । माथे रतन मुकुट छबि छाजै ॥ परम विशाल मनोहर भाला । टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला ॥ कुण्डल श्रवण चमाचम चमके । हिये माल मुक्तन मणि दमकै ॥ कर में गदा त्रिशूल कुठारा । पल बिच करैं अरिहिं संहारा ॥ पिंगल कृष्णो छाया नन्दन । यम कोणस्थ रौद्र दुख भंजन ॥ सौरी मन्द शनी दश नामा । भानु पुत्र पूजहिं सब कामा ॥ जापर प्रभु प्रसन्न हवैं जाहीं । रंकहुँ राव करैं क्शण माहीं ॥ पर्वतहू तृण होइ निहारत । तृणहू को पर्वत करि डारत ॥ राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो । कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो ॥ बनहूँ में मृग कपट दिखाई । मातु जानकी गई चुराई ॥ लषणहिं शक्ति विकल करिडारा । मचिगा दल में हाहाकारा ॥ रावण की गति-मति बौराई । रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई ॥ दियो कीट करि कंचन लंका । बजि बजरंग बीर की डंका ॥ नृप विक्रम पर तुहिं पगु धारा । चित्र मयूर...

श्रीनवग्रहस्तोत्रम्

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जपाकुसुमसङ्काशं काश्यपेयं महाद्युतिम्। तमोऽरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम्॥ १॥ दधिशङ्खतुषाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम्। नमामि शशिनं सोमं शम्भोर्मुकुटभूषणम्॥ २॥ धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्। कुमारं शक्तिहस्तं तं मङ्गलं प्रणम्यहम्॥ ३॥ प्रियङ्गुकलिकाश्यामं रूपेणाप्रतिमं बुधम्। सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणम्यहम्॥ ४॥ देवानां च ऋषीणां च गुरुं काञ्चनसन्निभम्। बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्॥ ५॥ हिमकुन्दमृणालाभं देवनं च शुक्रमर्चितम्। सदाशक्तिप्रभाकरं भर्गं प्रणमाम्यहम्॥ ६॥ नीलाञ्जनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्। छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥ ७॥ अर्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्यविमर्दनम्। सिंहिकागर्भसम्भूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम्॥ ८॥ पलाशपुष्पसङ्काशं तारकाग्रहमस्तकम्। रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम्॥ ९॥ इति व्यासमुखोद्गीतं यः पठ...

॥ श्रीदुर्गा: कवचम्‌॥

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                                                       ॐ नमश्चण्डिकायै।                           ॥मार्कण्डेय उवाच॥ ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्। यन्न कस्य चिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह॥१॥                                 ॥ब्रह्मोवाच॥ अस्ति गुह्यतमं विप्रा सर्वभूतोपकारकम्। दिव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्वा महामुने॥२॥     प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्॥३॥ पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्॥४॥     नवमं सिद्धिदात्री च नव दुर्गाः प्रकीर्तिताः। उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना॥५॥ अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे। विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः॥६॥   ...

श्रीहनुमानचालीसा

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  ॥ श्रीहनूमते नमः ॥       श्रीहनुमानचालीसा               दोहा ॥श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि । बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥ ॥ बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार। बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार ॥ ॥ चौपाई ॥ जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥ राम दूत अतुलित बल धामा । अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥ महाबीर बिक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमति के संगी॥ कंचन बरन बिराज सुबेसा । कानन कुंडल कुंचित केसा ॥ हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै । काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥ संकर सुवन केसरीनंदन । तेज प्रताप महा जग बंदन ॥ बिद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ॥ प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लषन सीता मन बसिया ॥ सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा । बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥ भीम रूप धरि असुर सँहारे । रामचंद्र के काज सँवारे ॥ लाय सजीवन लखन जियाये । श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥ रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥ सहस बदन तुम्हरो जस गावैं । अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥ सनक...

श्री राम चालीसा

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                                             ॥ दोहा ॥ आदौ राम तपोवनादि गमनं हत्वाह् मृगा काञ्चनं वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीव संभाषणं बाली निर्दलं समुद्र तरणं लङ्कापुरी दाहनम् पश्चद्रावनं कुम्भकर्णं हननं एतद्धि रामायणं ॥ चौपाई ॥ श्री रघुबीर भक्त हितकारी । सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी ॥ निशि दिन ध्यान धरै जो कोई । ता सम भक्त और नहिं होई ॥ ध्यान धरे शिवजी मन माहीं । ब्रह्मा इन्द्र पार नहिं पाहीं ॥ जय जय जय रघुनाथ कृपाला । सदा करो सन्तन प्रतिपाला ॥ दूत तुम्हार वीर हनुमाना । जासु प्रभाव तिहूँ पुर जाना ॥ तुव भुजदण्ड प्रचण्ड कृपाला । रावण मारि सुरन प्रतिपाला ॥ तुम अनाथ के नाथ गोसाईं । दीनन के हो सदा सहाई ॥ ब्रह्मादिक तव पार न पावैं । सदा ईश तुम्हरो यश गावैं ॥ चारिउ वेद भरत हैं साखी । तुम भक्तन की लज्जा राखी ॥ गुण गावत शारद मन माहीं । सुरपति ताको पार न पाहीं ॥ 10 ॥ नाम तुम्हार लेत जो कोई । ता सम धन्य और नहिं होई ॥ राम नाम है अपरम्पारा । चारिहु वेदन जाहि पुकारा ॥ गणपति नाम तुम्हारो ...